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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
तपला रिष तुं सोचावई, इहां पद्मसुंदर नहीं आवई ।
करिस्यां पातिसाह हजूर, खरतर घरि वाज्या तूर ॥२१॥ मिगसर बदी छट्ठ प्रभातई, मिलिआ पातिसाह संघातई ।
वाइमल्ल बोलायउं पिछाणी, साहि बात सहु गुदराणी ॥२३॥ आणंदइ खरतर माल्हई, कविराज कई की आहवालई ।
निज २ थानक सवि आया, विहाणई कविराज बुलाया ॥२३॥ अनिरुद्ध महादे मिश्र, मिलिया तिह भट्ट सहश्र ।
साधुकीर्ति संस्कृत भाखड़, बुधिसागर स्युं स्युं दाखई ॥२४॥ पंडित कहइ मूढ गमार, तेरो नाम छै बुद्धि कुठार ।
पोषह चरचा दिन पंच, साचउं खरतर पक्ष संच ॥२५।।
कविराजई निर्णय कीयउं, जूठउं बुद्धि कुठार।
___ साहि पासि जाई कहू. पोषह पर्व विचार ॥२६।। पद्मसुन्दर इम चिंतवई, इणि हाणई मो हानि ।
साहि पास जाइ कहइं, द्यो हम जीवीदान ॥२७॥ मिगसर वदी बारस दिने, गया साहि आवासि ।
खरतर पूठइ देवगुरु, तपा गया सब नासि ॥२८॥ साहि हजूर बोलाविआ, श्वेताम्बर क न्याय । हुं करिस ततखिण खरउ, तेड्या पण्डित राय ॥२६।।
ढाल हिव तेड्या पंडित रायई, कविराज सभा बोलायई।
___ साधुकीर्ति संस्कृत बोलई,खिरतर कहि केहनइ तोले ॥३०॥
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