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________________ कविवर श्रीसार कृत श्री जिनराजसूरिरास [ रचना समय सं० १६८१] --***-- ............."तोरण चंग। दीठां सगला दुख हरइ, थायइ अति उछरंग ॥१॥ मेरी। अति सखर सुंदर अति भली, सोहई घणी ध्रमसाल । जिह आवी व्यवहारिया, धरम करइ सुविसाल ॥१०॥ मेरी० । वन वाग वाड़ी अति घणी, तिहां रमइ लोक छयल । सोहइ नगर सुहामणउ, भोगी करइ सयल ॥११॥ मेरी। 'रायसिंघ' राय करावियउ, 'नवउ कोट' अमली माण । कचमहले करि सोभतउ, केहउ करूं वखाण ॥१२॥ मेरी। हिव राज पालइ रंग सेती, राजा तिहां 'रायसिंघ' । ___ क्यरी मृगला भांगिवां, ए सादूलोसिंघ ॥१३॥ मेरी। प्रतिपयउ ‘राठोड़ा' कुलई, सेवकां पूरइ आस । - पट्टराणी साथइ सदा, विलसहि भोगविलास ॥१४॥ मेरी० । तेहनइ 'मुहतउ' मलहपतउ, परदुख काटनहार । 'कर्मचन्द' नामइ दिपतउ, बुद्धई अभयकुमार ॥१५।। मेरी० । डोलती 'राखी' जेण पृथ्वी, दिया दान अपार । 'पैंत्रीसई' मांहि मांडियउ, सगलइ सत्तूकार ॥१६॥ मेरी। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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