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________________ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह श्रीजिनचन्द्रसूरि सानिधइ, "दया कलश" गुरु सीस रे । " साधुकोति” जगि जयत छई, कहइ कवि "जल्ह" जगीस रे | ८|खर० ॥ इति श्री साधुकीरति गुरु जयपताका गीतं । ( २ ) १३८ संवत् दस सय असीयइ पाटणइ, ची ( चैत्य ) वासी मलिमाणो जी । खरतर विरुद लहउ दुर्लभ मुखइ, सूरि जिणेसर जाणोरे । १ । जय पाडयउ (पाम्यो ?) खरतर पुरि आगरइ, साधुकीर्त्ति बहु नूरे जी । पोसह पर्व दिनइ जिण थापीयउ, अकबर साहि हजरे रे |२| जय आगरइ पुरि मिगसरि धुरि बारसी, सोलपंचवीस वरीस जी । पूरव बिरुद सही उजवालियर, साधुकीर्त्ति सुजगीशो रे | ३|ज० च्यारि वरण खरतर (कुं) जय (जय) करि, जाणइ बाल-गोपालजी । बूठा वाट बटाऊ सहु कहर, कुमती सिर पंच तालोजी |४| जय कुबुद्धि षष्ट थयउ तर विण सही, नीलज अनइ "IF तस्कर जिम दुइ भेरि बजाविनइ, आव्यउ रयणी ठामजी |५|ज० चामल मेघदास नेतसी, ले अकवर फुरमाणो जी । पंच शब्द बजावी जय लहयउ, खरतर कोयउ मंडाणो जी | छान श्री जिनदत्त कुशलसूरि सानिधइ, उत्तम पुण्य प्रकारो जो । कर जोडी नइ' खइपति" वीनवइ, खरतर जय-जयकारोजी 19 ज इति श्री जयपताका गीतं ।। श्री । श्रा० भरही पठनार्थ ॥ ( पत्र १ श्रीपुजजी सं० ) Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only ...... www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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