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________________ श्री साधु कीर्ति जयपताका गीतम्। FESSETTE Or A LA ॥ जयपताका गीत ॥ सोलहसइ पंचवीसइ समइ, आगरइ नयरि विशेष रे । पोसहकी चरचा थकी, खरतर सुजस नी रेख रे । १। खरतर जइत पद पामीयउ, साधुकीर्ति जय सार रे । साहि अकवर काउ श्रीमुखई, पण्डित एह उदाररे । खरः "बुद्धिसागर" तणी बुद्धि गइ, भाखीयउ अति अविचार रे । षष्ट थया तपा ऋषिमती, खरतरे लहयउ जयकार रे।२। संस्कृत तपलो न बोलीयउ, थया खिसाण अपार रे। चतुर अकबर मुख पंडिते, करी सागर बुधि हार रे ।३। खर० तर्क व्याकर्ण पढ़यउ नहीं, मरम ए सुण्यउ अखण्ड ए। मलम सागर बुधि ऊघडयउ, जाणीयउ अशुचि नउ पिंड रे ।४।ख० गंगदासि साह धोधू तणइ, मोड़ीयउ कुमत नउ माण रे। ___ बचन पतिशाह ए बोलियउ, बुद्धि सागर अजाण रे ।५। खर० पीतलि मांहि थी नीकली, अहवा रङ्ग पतङ्गरे । ऋषिमती सहु अछइ एहवा, सागर बुद्धि तणइ भंग रे ।६। खर० हुकम करि पातिशाहइ दीया, भेरि दमाम नीसाण रे । गाजतइ बाजतइ आवीया, खरतर सुजस वखाण रे । ७ । खर० Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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