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________________ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह दहा:-श्रीजिन माणिकसूरि गुरु, दीघउ पद उवझाय । जेसलमेरइ माहि सुदि, दसमि नमउ तसु पाय ॥ १०॥ सुगुरु पाय प्रमोद नमीयइ, दुख दुरगति दूरइ गमीयइ । भव सागरि भिमि न भमीयइ, सुख संपति सरिसा रमीयइ ॥११॥ खरतरगछि पूनिम चन्द, गुरु दीठइ मनि आणंद । सेवंता सुरतरु कंद, रंजइ गुरु वचनि नरिंद ॥१२॥ साह कोडा नंदन धन्न, कोडिम दे उयरि रतन्न । 'कुलतिलक' सुगुरु चा सीस, उवझाय सदा सुजगीस ॥१३॥ श्री भावहर्ष हितकारी, सुधउ भुनि पंथ विचारी। पंच समिति गुपति गुणधारी, विहरइ गुरु दोष निवारी ॥१४|| श्री भावहर्ष उबझाया, चिरजीवउ मुनिवर राया। मई हरखइ सुहगुरु गाया, मुझ हीयडइ अधिक सुहाया ।।१५।। (संग्रहस्थ पत्र १ तत्कालीन लि० रचित) सुखनिधान गुरुगीतम् राग धन्याश्री सुगुरु के पणमो भवियण पाया, श्रीसमयकलश गुरु पाटि प्रभाकर, सुखनिधान गणिराया ।१। हुंवड वंस विक्षात सुणीजइ, धइ सुख सम्पति ध्याया। गुणसेन वदति सुगुरु सेवातई, दिन २ तेज सवाया।२। * १ सं० १६८५ चैत्रादि ३ दिने शुक्रवारे पं० गुणसेन लिखोतं ऋषिदेव रतन वाचनार्थ ( श्रीपूज्यजी संग्रह हयगुटकेसे ) Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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