________________
१२८
ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
(२) जिनसिंहसरि गहुंली चालउ सहेली सहगुरु वांदिवाजो, सखि मुझ मनि वांदिवानो कोड़रे। श्रोजिनसिंहसूरि आवीयाजो, सखा करूं प्रणाम कर जोड़ रे ।।चा० मात चांपलदे उरि धर्याजो, सखो चांपसो शाह मल्हार रे । मनमोहन महिमा निलउजो, सखी चोपड़ा साख शृङ्गार रे ।राचा० वइरागइ व्रत आदर्योजी, सखी पेच महाव्रत धार रे'। सकल कलागम सोहताजी, सखो लब्धि विद्या भंडार रे ॥३॥चा०॥ श्री अकबर आग्रह करिजी, सखी कास्मोर कियउ विहार रे । साधु आचारइ साहि रंजीयउरे, सखो तिहां वरतावि अमारिरे।४ाचार श्रीजिनचंद्रसूरि थापोयउजी, सखी आचारिज निज पटधार रे। संघ सयल आस्या फली, सखी खरतर गच्छ जयकार रे ।५चा० नंदि महोच्छव मंडोयउजी, सखि कर्मचंद्र मंत्रीस रे। नयर लाहोर वित बावरइजो, सखो कवियण कोडि वरीस रे ।६चा गुरुजी मान्या रे मोटे ठाकुरेजो, सखी गुरुजी मान्या अकबरसाहिरे। गुरुजी मान्या रे मोटे उंबरेजो, सखी जसु श त्रिभुवनमांहि रे ।चा मुझ मन मोह्यो गुरुजी तुम गुणेजो, सखि जिम मधुकर सहकार रे । गुरुजी तुम दरसण नयणे निरखतांजी, सखी मुझमनि हर्षअपार रे।८। चिर प्रतपइ गुरु राजीयउजी, सखो श्रीजिनसिंघसूरीस रे। 'समयसुंदर' इम विनवइजी, सखो पूरउ माहरइ मनहीं जगीस रेहाचा
बधावा (६) आज रंग बधामणां, मोतीयडे चउक पूरावउ रे ।
श्रीआचारिज आविया, श्रीजिनसिंहसूरि वधावउ रे ॥१॥आ०॥
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org