SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जिनसिंहसूरि गीतानि (३) गुरु गीतम् आज मेरे मन को आश फली । श्रीजिनसिंहसूरि मुख देखत, आरति दूर टली ॥१॥ श्रीजिनचंद्रसूरि सहत्थइ, चतुर्विध संघ मिली । शाहि हुकम आचारज पदवी, दीधी अधिक भली ॥२॥ - कोडि वरिस मंत्री श्रीकरमचंद्र, उत्सव करत रली । " समय सुन्दर" गुरुके पदपंकज, लीनो जेम अली ||३|| (४) जिनसिंहसूरि हीडोलण गीतं १२७ सरश्वति सामणि वीनवुं, आपज्यो एक पसाय | श्रीआचार्य गुण गाइ, हीडोलणा रे आनंद अंगिन माय || १ || ही ० || वांदs श्रीजिनसिंहसूरि, ही० प्रह उगमत (ल) इ सूरि | ही० | मुझ मन आनंद पूरि, ही० दरसण पातिक दूरि ||०|| मुनिराय मोहण बेलड़ी, महियल महिमा आज । चंद जिन चढ़ती कला हीं० श्रीसंघ पूरवइ आस ||२|| सोभागी महिमा निलड, निलवट दीपइ नूर । नरनारि पाय कमल नमइ, हो० प्रगट्यो पुण्यपडूर ||३||ही०|| चोपड़ा वंशइ परगड, चांपसी शाह मल्हार | ही० मात चांपल दे उरि धर्या, ही० प्रगटयउ पुण्य प्रकार || ४ || ही ० || चौरासी गच्छ सिर तिलड, जिनसिंहसूरि सूरीस । चिरजय चतुर्विध संघ सुं, ही० 'समयसुन्दर' यह आसीस ||५|| ही ० •***:• Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy