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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
अत्यंत आदर मान गुरुने, पादशाह अकबर दियउ । धर्म गोष्ठि करतां दया धरता, हिंसा दोष निवारिया।
आणंद वरत्या हुआ ओच्छव, गुरु लाहोर पधारिया ॥२॥ श्रीअकबर आग्रह करी, काश्मीर कियो रे विहार,
श्रीपुर नगरसोहामणुं ,तिहां वरतावी अमार ॥ अमार वरती सर्व धरती, हुओ जयजयकार ए,
गुरु सीत ताप(ना) परीसह, सह्या विविध प्रकार ए। -महालाभ जाणी हरख आणी, धीरपणुं हियडे धरी,
काश्मीर देश विहार कोधो, श्रीअकबर आग्रह करी (३) श्री अकबर चित रंजियो, पूज्यने करइ अरदास ।
आचारिज मानसिंघ करउ, अम मन परमउल्लास अम्ह मन आज उलास अधिकउ, फागुण शुदी बीजइ मुदा ।
सइहत्थि जिनचंदसूरी दोधी, आचारिज पद संपदा । करमचंद मंत्रीसर महोत्सव, आडंबर मोटो कियो । गुरुराजना............
............ ॥४॥ गुण देखि गिरुआ, वरीस सह गुरु, चापडां चडती कला । चांपशी साह मल्हार चांपल. देवि माता तन इला, पादसाह अकबरसाहि परख्यो, श्रीजिनसिंघ सूरि चिरजयउ । आसीस पभणइ “समयसुन्दर", संघ सहु हरखित थयउ ॥५॥
इति श्रीजिनसिंहसूरीणां जकडी गीतं समाप्तम्
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