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________________ || श्री जिन सिंहसूर गीतानि ॥ रागः—बेलाउल ( १ ) शुभ दिन आज बधाइ, धवल मंगल गावो माइ । श्रीजिनसिंहसूरि आचारज, दीपइ बहुत सवाइ ||१|| शुभ० ॥ शाहि हुकम श्रीजिनचन्द्रसूरि गुरु, सहथि दीन बडाइ । मंत्रीश्वर कर्मचंद्र महोच्छव, कोनउ तबहु बनाइ ||२||शु०॥ पातिशाह अकबर जाकुं मानत, जानत सब लोकाइ | कहइ 'गुणविनय' सुगुरु चिरजीवउ, श्रीसंघ कुं सुखदाइ ||३||शु०॥ (२) रागः – मेवाडउ श्री गौतम गुरु पायनमी, गाउँ श्री गच्छराज श्रीजिनसिंघ सूरीसरु, पूरवइ वंछित काज ॥ पूरबड़ वंछित काज सहगुरु, सोभागी गुण सोहइ ए मुनिराय मोहन वेलि ने परे, भविक जन मन मोह ए। चारित्रपात्र कठोर किरिया, धरमकारज उद्यमी, गच्छराजना गुणगाइस्युं जी, गुरु लाहोर पधारिया, तेडाव्या कर्मचंद | श्री गौतम गुरु पनी ||१|| श्री अकबर ने सहगुरु मिल्या, पाम्या परमाणंद | पामीया परमानंद ततक्षण, हुकम दिउ उठो ने कियो । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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