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श्रोजिनचन्द्र सूरि गीतानि.
१२३३ साहि प्रतिबोधता पंच नदी साधतां,
सुजसमइ जास जगि भेर वागी । "लब्धिकलोल" मुनि कहइ (कहति) गुरु गावतां,
आज मुझ परम मनि प्रीत जागी ॥२॥आ॥
(३०) गहुँलो सुगुरु मेरउ कामित कामगवी।
__मनशुद्र साही अकबर दोनी, युगप्रथान पदवी ॥१॥सु०॥ सकल निसाकर मंडल समसरि, दीपति वदन छवि ।
महिमंडल मइ महिमा जाकी, दिन प्रति नवीनवी ॥२॥सु०॥ जिनमाणिक सूरि पाटि उदयगिरि, श्रीजिनचंद्र रवी ।
पेखत ही हरखत भयउ मन मइ, "रत्न निधान" कवी ॥३॥सु०॥
(३१) सुयश गीत ॥राग:-धन्याश्री ॥ नमो सूरि जिणचन्द दादा सदादीपतउ,
___जीपतउ दुरजण जण विशेष । रिद्धि नवनिद्धि सुखसिद्धि दायक सही,
पादुका प्रहसमइ उठि देख ॥ १॥ नमो० ॥ सधवट मोटिकउ बोल खाटयउ खरउ,
शाहि सलेम जसकोध सेवा । गच्छ चउरासी ना मुनिवर राखिया,
___साखीया सूरिजचन्द देवा ॥ २ ॥ नमो० ॥
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