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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह इक छत्र सिरु बरि मथाडंबर, धारति दौऊ समान । कहति"लब्धि"जिनचंद धराधर, प्रतिपो जहाँ दोऊ भान ॥भा० दु०॥
गहुंली नं० (२८) रागः-धवल धन्याश्री। नोको नीकउरी जिनशासनि ए गुरु नीको । युगप्रधान जगि जंगम एही,दोयउ जसुअकबर ठो(टो?) कउरी।।जि०|आंक राज काज (आज) हम सुन्दर, सफल भयउ अब नीको । साहि अकबर कहइ जु मोकुं, दरसण थयो गुरुजी कउरी ॥१॥जि०।। मोहन रूप सुगुरु बडभागी, लह्यौ मान श्रीजीउ को। जे गुरु उपर मद मच्छर धरतां, हुउ मुख तिहा फोकउ रो।।२।।जि०॥ श्रीगुरु नामि दुरति हरि भाजइ, नाद सुगो जिउ सीह को। सार (ह?)श्रीवंत सुतन चिर जीवउ, साहित्र “लब्धि" मुनी को ।।३।।
गहुंली नं० (२९) रागः-सोरठी। आज उछरंग आणंद अंगि उपनौ,
आज गच्छ राज ना गुण थुणोजइ । गाम पुरि पाटणइ रंगि वधावणा,
नवनवा उछव संघ कीजइ । आज०||आot हुकम श्री साहि नइ पंच नदि साधिनइ,
- उदय कीयउ संघनो सवायौ । संघपति सोमजी, सुणउ मुझ बिनती,
सोय जिणचंद गुरु आज आयो ॥१॥आ०॥
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