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________________ श्रीजिनचन्द्रसूरि गीतानि रोस रोस हम मनि नहीं, एक जोभ किम करउं वखाण । श्रोजिनकुशल सूरिन्द्र नै, समरणि लाभै कोड़ि कल्याण कि ||१७|| गहुंलो नं० (२६) रागः - गूजरी । अब मइ पायउ सब गुणजांण । साहि अकवर कहइ ए सुहगुरु, जिनशासन सुलताण || अव० || आंकणी ।। यतीय सती मई बहुत निहाले, नहीं को एह समान । १२१ के क्रोधी के लोभो कूड़ा. केइ मन धरइ गुमान || १ || अव०|| गुरुनी वाणि सुगी अवनिपती, वूझयउ द्यइ सन्मान | देस विदेश जीऊ हिंस्या दली, भेजी निज कुरमान ||२|| अब ०|| श्रीजिनमाणिक सूरि पटोधर, खरतरगच्छ राजान | चिरजीवो जिनचंद यतीश्वर, कहइ मुनि “लब्धि ” सुजान ॥ ३ ॥ अव८॥ गहुंली नं० (२७) रागः – गूजरी । दुनिया चाहइ दौ सुलतान । इक नरपति इक यतिपति सुन्दर, जाने हइ रहमान || दु०|| आंकणी ।। राय राणा भू अरिजन साधी, वरतावो निज आण । बर्जर बंस हुमाऊ नंदन, अकबर साहि सुजांग || १ ||०|| विधि पथ हीलक दुरजन जनके, गाली मह अभिमान । श्रीवंत सुत सब सूरि सिरोमणी, जग मांहि "जुगप्रधान " ||२||दु०॥ सिंहासन हुकुम सुनावति, कौ नवि खंडत आण । मिर 'मलक' बहु उनकुं सेवति, इनकुं मुनि राजान || ३ || दु० || Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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