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श्रोजिनचन्द्रसूरि गीतानि
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mmmmmmmmmmmmm संवत सोल सतरोत्तरइ, पाटण नयर मझार रे। मेली दरसण सहु संमत, ग्रन्थ नी साखि साधार रे ॥५॥जीतउ०॥ पूर्व बिरुद उजवालियउ, साखि दाखइ सहु लोक रे। तेज खरतर सहगुरु तणउ, ऋषिमती ते थयउ फोकरे ॥ाजोतउ०।। रिगमती (ऋषिमती) जे हुँतउ 'कंकली' वोलतो आल पंपाल रे । ___ खष्ट कोधउ खरतर गुरे, जाणइ बाल गोपाल रे ॥णाजीतउ०॥ निलवट नूर अतिसउ घणउ, खरतर सोह सम जोडि रे ।
जंबु करिगमता जे भिडइ, जय किम पामइ सोइ रे ॥८॥जीतउ०॥ माणिकसूरि पाटइ तपइ, रिहड कुल सिणगार रे । श्रीजिनचन्द सूरि गुणधा निलउ, सेवक जन सुखकार रे ॥जी०
(२५) विधि स्थानक चौपई। गरुवौ गच्छ खरतर तणौ, जेहनै गुरु श्रीजिनदत्तसूरि । - भद्रसूरि भाग्यइ भर्यो, प्रणमन्ता होइ आणंद पूरि कि ॥१॥ सूरि शिरोमणि चिरजयउ, श्रीजिनचन्द्रसूरि गणधारि ।
कुमति दल जिण भांजियउ, वो जग मांहिं जय २ कार कि ॥२॥ बालपणइ चारित लियउ, विद्या बुद्धि विनय भंडार ।
__ अविधि पंथ जिण परिहरी, धारइ पंच महाव्रत धार कि ॥३॥ गुण छत्तीस सदा धरइ, कलिकालइ गोयम अवतार ।
सहु गच्छ माहे सिर धणी, रुपे मयण मनायउ हार कि ॥४॥ सूरि "जिनेश्वर" जगतिलउ, तासु पाटाऽभय देव विख्यात ।
वृत्ति नवांगि जिणइ करी, तेतो खरतर प्रगटावदात कि ॥५॥
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