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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
गुरु गीत नं० २३ सभ (ब?) नमइ चक्रवर्ती जिनचन्दसूरि,
चतुर (विध)संघ चतुरंग सेन सजि, वारे विघन अरि दूरि । नव तत नवनिधान जिन पाए, आगम गंगा कूरि ।
चवद विद्या गुण रतन संग करि, नीकउ नीलवट नूरि ॥१॥स०॥ पंच महाव्रत महल (ण?)श्रमण गुण, हइ दरवार हरि । दरसण ज्ञान चरण त्रिण्ह तोरथ, साधि सकति अरि चूरि ॥२॥स। मरुधर गूजर सोरठ मालत्र, पूरब सिंध संपूरि ।।
षटखण्ड साधि परम गुरु सानिधि, घुरे सुजस के तूरि ॥३॥स०॥ निरमल वंस उदय फुनि पाए, दरसन अंगि अंकूरि । मुनि"जयसोम"बदति जय २ धुनि, सुगुरु सकति भरपूरि ॥४॥स०॥
जयप्राप्ति गीत
(२४) राग :देखउ माई आसा मेरइ मनकी, सफल फलीरे उलटि अंगि न माइ । सुजस जसु देसंतरइ, नवखंडि दीपायउ नाम रे ।
माम मोटी महि मंडले, सव जन काइ प्रणाम रे ॥१||जीतउ०॥ .. श्रीखरतरगच्छ राजीयउ, श्रीजिनचंद्र मुर्णिदरे ।
____ मान मोड्यो कुमति तणउ, त्रिभुवन हुओ आणंद रे ॥२॥ पाटणि भूप दुर्लभ मुखे, बरस दससइअसी मानि रे । सूरि गण पमुह तिहां चउरासो, मढ़पति जीपीआसाणि रे॥३॥जीतउ०॥ दिवस शुभ थान पंचासरइ, करीय परणाम विसार रे ।
सूरि जिगेश्वर पामोयो, खरतर विरुद्ध उदार रे ॥४॥जोत उ०।।
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