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________________ ११२ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह तारइ २ श्रीवंत शाह नो नन्दन वाहण तणी परइ । तारइ २ सिरियादे नो सुत कि, वाहण सिला मती ए। तारइ २ श्रीपूज्य सुसाधु, श्रीखरतरगच्छ गच्छपत्ति ए ॥ आं०॥ अविहड़ वाहण ए सही ए, सविहुं सुख व्यापार । धर्म धन दायकू ए ॥ १८ ॥ तारइ तारइ श्री समकित अति निर्मलो ए। ___पहलउ ते पयठाण, सुमति सूत्रेधों ए ॥ १६ ॥ ता० गुण छतीस सोहामणा ए। विहु दिसि बांक मंडाण, सुकृत दल मलिवा ए॥२०॥ ता० कूया धुंभ चारित्र तणउ ए । जयणा जोडी संधि, सबल सढ तप तणउ ए ।। २१ ।। ता० शोल डबू सो सोभतो ए। ले मत सुगुरु वखाण, दया गुण दोरड़ो ए ।। २२ ।। तारइ तारइ कलमी ते शुद्धी क्रियाए, पुण्य करणी पंतांस, संतोष जलइ भर्याउ रे ॥२३॥ ता० दशविध धर्म वेडूं गवी ए। संवर तेह जना रखि मासरि छत्रडी ए ॥२४॥ ता० सतर भेद संयम तणा ए, __ते आउला अपार । संवेग सुं पंजरी ए ॥२५॥ ता० आझा नालु अणी समोए। पंच समिति पर वांण, कीर्चिधज जह लहइ ए ॥२६॥ ता० विजइ वारह भावनाए। (दा) हांडा शुभ परिणाम, नागर नवतत्त्व तणाए ॥२७॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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