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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह तारइ २ श्रीवंत शाह नो नन्दन वाहण तणी परइ । तारइ २ सिरियादे नो सुत कि, वाहण सिला मती ए।
तारइ २ श्रीपूज्य सुसाधु, श्रीखरतरगच्छ गच्छपत्ति ए ॥ आं०॥ अविहड़ वाहण ए सही ए, सविहुं सुख व्यापार ।
धर्म धन दायकू ए ॥ १८ ॥ तारइ तारइ श्री समकित अति निर्मलो ए।
___पहलउ ते पयठाण, सुमति सूत्रेधों ए ॥ १६ ॥ ता० गुण छतीस सोहामणा ए।
विहु दिसि बांक मंडाण, सुकृत दल मलिवा ए॥२०॥ ता० कूया धुंभ चारित्र तणउ ए ।
जयणा जोडी संधि, सबल सढ तप तणउ ए ।। २१ ।। ता० शोल डबू सो सोभतो ए।
ले मत सुगुरु वखाण, दया गुण दोरड़ो ए ।। २२ ।। तारइ तारइ कलमी ते शुद्धी क्रियाए,
पुण्य करणी पंतांस, संतोष जलइ भर्याउ रे ॥२३॥ ता० दशविध धर्म वेडूं गवी ए।
संवर तेह जना रखि मासरि छत्रडी ए ॥२४॥ ता० सतर भेद संयम तणा ए,
__ते आउला अपार । संवेग सुं पंजरी ए ॥२५॥ ता० आझा नालु अणी समोए।
पंच समिति पर वांण, कीर्चिधज जह लहइ ए ॥२६॥ ता० विजइ वारह भावनाए।
(दा) हांडा शुभ परिणाम, नागर नवतत्त्व तणाए ॥२७॥
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