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________________ श्रो पूज्य वाहण गोतम् ११३ . .. ता० करूणा कोलइ लेपीउ ए, ज्ञान निरुपम नोर । झोलउ समरस भर्योए ॥२८॥ ता० शासन नायक हू (क्रू) यउए, मालिम श्री गुरुराज । कराणि मुनिवरुए ॥२६।। ता० जिन भाषित मारग वहइ ए, वाजिननाद सिझाय । सुसाधु खलासीयाए ॥३०॥ तारइ २ ए मारग जिनधर्म तणउए, को डोलइ नहीं लगार । सदा सुखियां करइए ॥३१॥ ता० मल (चा ?) वारी ते काठोया ए, कुमती चोर होनोर । सहु भय टालताए ॥३२॥ ता० पुण्य क्रियाणे पूरीया ए, बहुरति वस्तु अनेक । सुजस पाखर खरीए ॥३३॥ ता० कषाय डूंगर जालाइए, वहत उ ध्यान प्रवाह । सिलामति आवीयोए ॥३४!! ढाल-रामगिरी:धर्ममारग उपदेशता, करता २ विधइ विहार रे। . __ आव्याजो नगर त्रंबावतो, श्री संघ हर्ष अपार रे ॥३५॥ पूज्य आव्या ते आसा फली, श्री खरतरगच्छ गणधार रे । श्री जिनचन्दसूरि वांदोयइ, साथइ २ साधु परिवार रे ॥३६॥पू०।। आगम सूत्र अर्थे भर्या, सुकृत क्रियाण ते सार रे। चारित्र वखारि अति भली(यां), व्रत पचखाण विस्तार रे ॥३७॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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