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श्री पूज्य वाहण गीतम्
सतर भेद संयम धरइ, गिरुआ गुण छतीस ।
अधिकी उत्कृष्टी क्रिया, ध्यान धरइ निसदीस ॥ ६ ॥ सूयगडांग सूत्रे कह्या, वीर स्तव अधिकार ।
भव समुद्र तारण तरण, वाहण जिम विस्तार ॥ १० ॥ आ भव सागर सारिखं, सुख दुख अंत न पार ।
सदगुरु वाहण नी परइ, उतारइ भवपार ।। ११ ॥
ढाल:-सामरी भवसागर समुद्र समान, राग द्वेष वि नेऊ धाण ?। ...
__ ममता तृष्णा जल पूर, मिथ्यात मगर अति क्रूर ।। १२ ।। मोजा ऊंचा अभिमान, विषयादिक वायु समान ।
संसार समुद्र मंझारि, जीव भभ्या अनंत वारि ॥ १३ ॥ हिव पुण्य तणइ संयोग, पाम्यो सहगुरु नो योगा
भवसागर तारणहार, जिन धर्म तणउ आधार ॥ १४ ॥ बाहण नी परि निस्तारइ, जीव दुर्गति पडितो वारइ । ___ कालरि जलि किहांन छीपइ, पर वादी कोइ न जीपइ ।। १५ ।। इहनइ तोफान न लागइ, सुखि वायु वहइ वैरागइ । जल थल सविहुं उपगारइ, भवियण जण हेलां तारइ ॥ १६ ॥
ढाल:-हुसेनी धन्यासिरी श्रीजिनराय नीपाइयउ ए, वाहण समुं जिनधर्म,
भविक जनतारवा ए ॥ १७ ॥
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