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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
( २० )
श्री खरतरगच्छ राजीयउ रे माणिक सूरि पटधारो रे । सुन्दर साधु सिरोमणी रे, विनयवंत परिवारो ॥ १ ॥ विनयवंत परिवार तुम्हारउ, भाग फल्यउ सखी आज हमारो ।
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ए चन्द्रालउ छइ अति सारउ, श्रीपूज्यजी तुम्हे वेगि पधारो ॥ १ ॥ जिणचन्दसूरिजी रे, तुम्ह जग मोहण वेलि ।
सुणज्यो वीनती रे, आवड आम्हारइ दिसि, गिरूआ गच्छपतिरे || वाट जोवतां आवीया रे हरख्या सहु नर-नारो |
संघ सहु उच्छव करइ रे घरि २ मंगलाचारो घरिघरि मंगलवारो रे गोरी, सुगुरु बधावड बहिनी मोरी ।
ए चन्द्राउलड सांभलज्योरी, हुं बलिहारी पूजजी तोरी ॥ २॥ श्री० अमृत सरिखा बोलड़ा रे, सांभलतो सुख थाज्यो ।
श्रीपुज्य दरसण देखतां रे, अलिय विघन सवि जाज्यो || अलिय विधन सहु जायइ रे दूरइ, श्रीपूज्य वांदु उगमते सूरइ ।
ए चन्द्रालउ गांउ हजूरइ, तउ मुझ आस पूलइ सवि नूरइ || ३ || जिणदीठा मन उलसइ रे नयणे अमीय झरंति |
ते गुरुना गुण गावतां रे, वंछित काज सरंति ॥
छित काज सरंति सदाइ, श्रीजिणचन्दसूरि वांदउ माई । ए चन्द्राला भास महंगाई, प्रीति "समयसुन्दर" मनिपाई || ४ || श्री ( २१ ) जनचन्दसूरि आलीजा गीत रागः - आस्यासिंधूडो थिर अकबर तुं थापीयड, युग प्रधान जग जोइ । श्रीजिनचन्दसूरि सारिख, सारि० कलिमें न दीसह कोय ॥ १ ॥
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