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________________ श्री जिनचन्द्रसूरि गीतानि १०६ उमाह धरी नइ तातजी हुँ आवियउरे, हो एकरसउ तुं आवि । मनका मनोरथ सहु फल्इ माहरा रे,हो दरसणि मोहि दिखाउ ।।२।। जिनशासनि राख्यउ जिणइ, डोलतउ डमडोल। समझायउ श्री पातिसाह, सदगुरु खाटयउ तई सुबोल । ऊ०॥३॥ आलेजो मिलवा अति घणउ, आयउ सिन्ध थी एथ।। नगर गाम सहु निरखीया, कहो क्युं न दीसइ पूज्य केथ ।उ० ॥४॥ शाहि सलेम सहु अंबरा, भीम सूर भूपाल । चीतारइ तुं नइ चाह सुं, हो पूज्यजी पधारउ किरपाल । ऊ ।।५।। बाबा आदिम बाहुबलि, वोर गौयम ज्युं विलाप । - मेलउ न सरज्यउ माहरउ मा०, ते तउ रह्यो पछताप । ऊमा०१६॥ साह बडउ हो सोमजी गख्यउ कर्मचन्द राज। अकबर इंद्रपुरि आणीयउ हो, आस्तिक वादी गुरु आज । उमा०/७१ मूयइ कहइ ते मूढ़नर, जीवइ जिणचन्दसूरि । __ जग जंपइ जस जेहनउ, जेह० हो पुहवि कीरत पडरि ।ऊमा०८५ चतुर्विध संघ चीतारस्यइ, जां जीविसइ तां सीम । वीसार्या किम विसरइ,विस० हो निर्मल तप जप नीम ।ऊमा०६। पाटि तुम्हारइ प्रगटीयउ, श्री जिणसिंह सूरीस । शिष्य निवाज्या तइ सहु , तइं० रे जतीयां पूरी जगीस ।ऊमा०१०॥ समयसुन्दर कृत अपूर्ण-प्राप्त Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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