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ऐतिहासिक जन काव्य संग्रह
मालवा गउडमिश्री अमृत थइ वचन मीठे गुरु तेरे हइ ताथइ (३५)
करउ वंदणा गुरुकुं त्रिकालइ हरउ पंच प्रमाद रे (३६) ____सबइकुं कल्याण सुख सुगुरु प्रसाद रे (३७) आ० ।।११।। बहु परभाति वउ उछव सार (३८)
पंचमहाव्रत धर गुरु उदार (३६) हुँ आदेसकार प्रभुतेरा, जुगप्रधान जिनचन्द
मुनिसरा, तुं प्रभु साहिब मेरा (४०) ॥१२॥ दुरित मे वारउ गुरुजी सुख करउ रे श्रीसङ्घ पुरउ आशा नाम तुमारइ नवनिधि संपजइ रे लाभइ लोल विलास (४१) ॥१३॥ धन्यासरी रागमाला रची उदार, छः राग छनोसे भाषा भेद विचार, सोलसइ बावन विजय दसमी दिने सुरगुरुवार,
थंभण पास पसायई त्रंबावती मजार (२) ध०) ॥१४॥ जुगप्रधान जिनचन्द सूरींद सारा
. चिर जयउ जिनसिंघसूरि सपरिवार (३ ध०) सकलचन्द मुणीसर सीस उन्नतिकार,
"समयसुन्दर" सदा सुख अपार (घ) ॥१५॥ इति श्रीयुगप्रधान जिनचन्दसूरीगां रागमाला सम्पूर्णा, कृता च०. समयसुन्दरगणिना लिखिता सं० १६५२ वर्षे
कार्तिक शुदि ४ दिने श्री स्तंभतीर्थ नगरे ।
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