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________________ श्रोजिनचन्द्रसूरि गीतानि अहो निकेत नटनराइण कइ आगइ अइसइ नृत्य करत गुरुके रागइ (१८) ऐसे शुद्ध नाटक होता गावत सुंदरी वेणु वीणा मुरज वाजत धुमर घुघरी (१६) ॥५॥ रास मधु माधवइ देति रंभा, सुगुरु गायति वायंति भंभा (२०) तेजपुज जिमसे भेइरवी, जुगप्रधान गुरु पेखउ भवि(२१)आ॥६॥ सबहि ठउर वरी जयतसिरी ( २२ ) गुरुके गुण गावत गुजरी (२३) मारुणि नारी मिली सब गावत सुन्दर रूप सोभागी रे (२४) आज सखि पुन्य दिसा मेरो जागी (२५) ॥७॥ तोरी भक्ति मुज मन मां वसी री ( २६) साहि अकबर मानइ जसु बाबरवंसी (२७) गुरुके वंदणी तरसइसिंधुया (२८) इया सारी गुरुकी मूरतिया (२६) आ० ॥८॥ गुरुजी तुंहिंजकृपाल भूपाल कलानिधि तुहिज सबहि सिरताज(३०) आवइ ए रीतइ गच्छराज (३१) । संकरा भरण लांछन जिन सुप्रसन्न जिनचंदसूरि गुरुकुंनतिकरु (३२) ॥६॥ तेरी सुरतकी बलिहारी, तुं पूरव आस हमारी, तुं जग सुरतरु ए (३३) गुरु प्रणमइरी सुरनर किन्नर धोरणी रे मनवंछित पूरण सुरमणी रे (३४) ॥१०॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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