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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
(१६) ॥ ६ राग ३६ रागिणी गर्भित् गीत ॥ कीजइ ओच्छव सन्तां सुगुरु केरउ (१)
सुललित वयण सुण सखि मेरउ (२) कहउरी संदेस खरा गुरु आवतिया (३)
तिणवेला उलसी मेरी छातिया (४) ॥१॥ आएरी सखि श्रीवंतमल्हारा,
खरतर गच्छ शृङ्गारहारा। ए आंकड़ी (५) अइसा रंग वधावन कीजइ (६)
गुरु अभिराम गिरा अमृत पीजइ. (७) ऐसे सुगुरु कुं नित्य उलगउरी (८)
सुन्दर शरीरा गच्छपति अउरी ।।६ ॥ आ० ॥२॥ दु:ख के दार सुगुरु तुम हउ री (१०)
गाउं गुण गुरु केदारा गउरी (११) सोरठगिरि की जात्रा करणकं आपणरी गुरु पाय परउ (१२)
भाग्यफल्यो ओच्छव लोकणरओ (१३) ॥३॥ तुं कृपापर दउलति दे मोहि हुँ तेरो भगत हु री (१४)
गुरुजी तुं उपर जीव राखी रहुंरी (१५) इहु सयनी गुरु मेरा ब्रह्मचारी (१६)
हुँ चरण लागुं डर डमर वारी (१७) आ० ॥४॥
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