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श्रीजिनचन्द्रसूरि गीतानि
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(१४) अपूर्ण सरस वचन सम्सति सुपसायइ, गाइसु श्री गुरुराय री माइ। युगप्रधान जिनचन्द यतीश्वर, सुर नर सेवे पाय रो माई।। कलियुग कल्पवृक्ष अवतरियो, सेवक जन सुखकार री माई ॥।। जिन शासन जिनचन्द तणो यश, प्रतपै पुहवि मझार री माई। प्रहसम नित नित श्रीगुरु प्रणमो, श्रीखरतर गणधार रो माई ॥२॥ संवत पनर पचाणुं वर्षे, रीहड़ कुल मनु भाण री माई । श्रीवंत शाह गृहणी सिरियादे, जनम्या श्री "सुरताण" री माई ॥३॥ संवत सोल चड़ोतर बरसे, लीधो संयम भार री माई । जिनमाणिक्यसूरि सैं हाथै दिक्षा, शिष्यरत्न सुविचाररी माई ॥४॥क० लघु वय बुद्धि विनाणे जाण्यो, श्रुतसागर नौ सार री माई । अभिनव वयर कुमर अवतारै, सकल कला भंडार री माई ॥५।।क०॥ वखत संयोगे सोल बारोत्तर, जेशलमेर मंझार री माई । पाम्यो सूरीश्वर पद प्रकटयो, श्रीसंघ जय २ कार रो माई ॥६॥क० उग्र विहार आदर्यो श्रीगुरु, कठिन क्रियाउद्धार री माई । चारित्र पात्र महंत मुनीश्वर, रत्नत्रय आधार री माई ॥णाक०।। सतरोत्तर वर्षे पाटण में, अधिक बधारी माम री माई । च्यार असी गच्छ साखै खरतर, विरुद दीपायौ ताम री माई ॥८॥क० हथगाउर सौरीपुर नामै, तीरथ विमलगिरिंद री माई । आबूगढ़ गिरनार सिखर तिहां, प्रणम्या श्रीजिनचन्दरी माई ॥६॥क० आरासण तारंगै तीरथ, राणपुरै गुरुराज री माई। वरकाणा संखेश्वर ग्रामे, प्रणम्या श्री जिनराजरी माई ॥१०॥०॥
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