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________________ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह जिनमाणिकसूरि पाट प्रभाकर, कलि गौतम अवतारी । कहइ “गुणविनय" सकल गुण सुंदर, गावत सब नर-नारी ॥४॥०॥ ( कवि के हस्तलिखित पत्र से उद्धृत ) (१३) राग-धन्यासिरी मारूणो सुगुरु मेरइ चिरि जीवउ चउसाल । खम्भायत दरिया की मच्छली, बोलत बोल रसाल शासु०॥ भाग हमारइ तिहां जावत हइ, लाभपुरइ भय टाल । श्रीजी कुं अइसी अरज करेज्यो, जलचर कुं प्रतिपाल ॥२॥सु०॥ एह अरज निसुणी पूज्यां तइ, रंज्यु वर भूपाल ! हुकम करि नइ छाप पठाइ, हरख्या बाल गोपाल |॥३॥सु०। युगप्रधान जिनचन्द यतीसर, छइ जसु नाम विशाल । शाहि अकबर तसु फरमाइ, तिणि झाड़ायाला जाल ॥४॥सु० निशभरि नींद अबइ आवत हइ, मरण तणु भय टाल । जय जय जय आशीस दियत हइ, मिलि जीवन की माल ||५||सु०॥ धन धन धोर हुमाऊं कुं नन्दन, जीवत दान दयाल । ___धन धन श्रीखरतरगच्छ नायक, षटकाया रखवाल ||सु०॥ धन मन्त्री कर्मचन्द वछावत, उद्यम कीउ दरहाल । ____ साहिब नइ साचइ सुप्रसादइ, अलीय विन्न सब टालि ॥णासु।। धन ते संघ इणइ जे अवसर, परघल खरचइ माल । तसु "कल्याण कमल" नो संपद, आपद न हुवइ बाल ||सु०. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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