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श्रोजिनचन्द्रसूरि गीतानि शील सत्त तप जप पूजा वस, माणिभद्र प्रमुख सुमन्न । ____ यक्ष सहु जिनदत्तसूरि सानिधै, तेह थया सुप्रसन्न ॥धन०॥ प्रहसमि गुरुजी पत्तणि अविया, वाज्या जेत्र निसाण ।
ठाम २ ना संघ मिल्या घणा, आपै दान सुजाण ॥१०॥धन०॥ धीरवाड़ वंसे परगड़ा, नानिग सुत राजपाल । सपरिवार तिहां बहु धन खरचिन, लीधो यश सुविशाल ॥१शाधन०॥ तिहां थी उच्चनगर गुरु आविया, वंद्या शान्ति जिणंद ।
देरावर प्रणम्या जग दोपता, श्रीजिनकुशल मुर्णिद ॥१शाधन० हिव तिहां थी मारग विचि आवतां, सुन्दर धुंभ निवेश । ... पद पंकज जिनमाणिकसूरिना, भेट्या तिणे प्रदेश ॥१३॥ध०।। नवहर पास जुहारी पधारिया, जेसलमेरु मंझार ।
फागन सुदी बीजै सहु हरषोया, राउल संघ अपार ॥१४॥धन०॥ श्रीजिनचंद यतीश्वर गुणनिलो, प्रतपो युग प्रधान । 'पद्मराज' इम पभणइ मन रसइ. दिन दिन वधतै वान ॥१५|धन०॥
बनी हे सहगुरुकी ठकुराई श्रीजिनचन्द्रसूरि गुरु वंदो, जो कुछ हो चतुराई ।।शाबनी।। सकल सनूर हुकम सब मानति तै जिन्ह कुं फुरमाई। अरु कछु दोष नहीं दिल अंतरि, तिमि सबहों मनिलाई ॥२॥बनी०॥ माणिकसूरि पाट महिमा वरो, लइ जिन स्युं वितणाइ । झिगमिग ज्योति सुगरुकी जागी, 'साधुकीरति' सुखदाइ॥शाबनी०॥
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