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________________ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह (१०) राग मल्हार पूज्य आवाज सांभलउ सहिए, हरख्या सगलालोक । मोरउ मन पिण उलस्यउ सहिए, जिम हरि दंसण कोक || १ | इण रे सुगुरु जी जग मांहि जस पडहउ बजाइयउ ॥ ० ॥ पहिलुं अकबर मानीया सहीए, ए गुरु हीरा खाणि । युगप्रधान पद तिण दियउ सहिए, पय लागइ रायराणि ॥ २ ॥ इण० || गच्छ अनेक मई जोइया सहिए, तुम सम अवर न कोई । ६८ हेलइ मयण वसी कीयउ सहिए, शीलइ थूलभद्र जोइ ||३||इण० अनुक्रम श्रीगुरु विहरता सहीए, आव्या पाटण मांहि । 'मास प्रभु तिहां करइ सहीए, मन आणी उच्छाह || ४ ||३०|| लेख आयउ आगरा थको सहीए, जाणो सगलो बात । साहि सलेम को पs चढ़यइ सहोए, कुमतो बांध्या राति ||५|| इ० || मासोकरि पांगुर्या सहीए करता देस विहार । उग्रसेनपुर आविया सहीए, वरत्या जय जयकार || ६ || ३० ॥ श्रीपातिशाह बोलाविया सहीए, जंगम जुगहप्रधान । धरम मरम कहि बूझव्यउ सहीए, तुरत दीया फुरमान ||७|| इ० || जिण शासन उजवालियउ सहीए, साह श्रीवंत कुल चन्द | साधु विहार मुगता कीया सहीए, खरतर पति जिणचन्द ||८||इण सिरिया दे उरि हंसलउ सहीए, तेजइ दीपइ भाण । " लब्धिशेखर " मुनि इम भणइ सहीए, सेवक आपण जाणि ॥६॥ इण० ॥ ( ११ ) राउल श्री भीम इम कहइ जी, जादव वंसि वदीत रे ॥ पूज जी ॥ (पधारो जेसलमेरु नइ जी, प्रीति घरी निज चित्त रे ॥रा०|| १ || Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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