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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
इम विमल चित्तइ भगइ भत्तइ, समयप्रमोद समुल्लसो । युगप्रवर जिनचन्द्रसूरि वंदो, जाम अम्बर रवि शशि ॥ ५ ॥
(८) ॥ पंच नदी साधन गीत ॥
विक्कम (पुर) नयरे श्री संघ हरषियो एह नी ढाल । श्री गौयम गणधर प्रणमी करी आणी उरट अङ्ग ।
गुरु गुण गावण मुझ मन गह गहै, थायइ अति उच्छरङ्ग ॥१॥ धन श्रीजिनशासन सलहियै, खरतर गच्छ सिणगार । ___युगप्रधान जिनचन्द जतीसरु, गुरु गोयम अवतार ।।२।।ध०।। लाभपुरे जिनधर्म सुणाविनै, बुझग्यो पातिसाह ।
श्री गुरु पंचनदी पति साधिवा, कोया मनहि उछाह ॥३॥धन।। संघ साथि मुलताण पधारिया, पइसार्यो सविशेष । देख हरण्या सवि जन पय नमै, खान मलिक तिम सेखाधिन०।। ठामि ठामि हुकुमइ श्री शाहिनै, कहतां धर्म विचार ।
__ अभयदान महियल वरतावनां, संघ उदय जयकार ।।५।।१०।। आया पंचनदी तट पत्तणइ, चन्द्रबेले अभिधान । __ आंबिल अठ्ठम तप गुरु आदरी, बैठा निश्चल ध्यान ॥६॥धन०।। सोलसय बावनै वच्छरै, पुष्प सहित रविवार । माहधवल बारस तिथि निरमलो, शुभ महूरत तिणि वार ।।अाध०।। बेड़ी बइसी पहुतां जिहां मिलै, पंचनदी भर नीर । अधरति निश्चल नाव तिहां रही, ध्यान धरै गुरु धीर ।।८॥धन०॥
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