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________________ श्रीजिनचन्द्रसूरि गीतानि ६५ असुरां गुरु प्रतिबोधीउ, दाखी धरम विचार । शासन सोह चढावीयो, माणिकसूरि पट्टधार ॥ पट्टधार माणिकसूरि नइ ए, रीहड़ वंसइ दिन मणी। श्रीवंत श्रीयादेवी नंदन, सुविहित साधु सिरोमणी ॥ गुणरयण रोहण भविय मोहन, कम्म सोहण व्रत लोउ। सुविचार सार उदार भावइ असुरां गुरु प्रतिबोधीयउ ॥ २ ॥ एहवो गुरु वंद्यो नहीं इणि जगि ते अकयथ । ___ अकबर श्रीमुख इम कहइ, खरतर गच्छ मणिमथ ।। मणिमथ खरतर गच्छ केरउ, अभिनवेरउ सुरतरु । मन तणा कामित सयल पूरइ, रुप जेम पुरन्दरु ॥ जसु तणइ दरसणि दुरित नासइ, रिद्धि वासइ घर सही। इम कहइ अकबर तेह अकयथ, जेणि गुरु वंद्यो नहीं ॥३॥ युगप्रधान पदवी भली, आपइ अकबर राज । सइमुख हरखै इम कहइ, ए गुरु सब सिरताज । सिरताज सब गच्छ एह सहगुरु, करइ बगसीस इम वली, गुजरात खभायत मंदरि करउ निरभय माछली। वर्धमान सामि तणइ शासनि, करी उन्नति इम रली। आपइ अकबर अधिक हरणे, युगप्रधान पदवी भली ॥४॥ जां लगि अम्बर रवि शशि, जां सुर शैल नदीस । तां नंदउ ए राजियो, मानइ आण नरेस ॥ जसु आण मानइ राव राणा, भाव बहु हियडै धरी । नन्द बुधिरस शशि वरसि चैत्रह नवमि तिहि अति गुण भरी । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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