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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
सूधउ मारग उपदिसी, पाय लगाड्या लाख । स० ।
दरसण ज्ञान क्रिया धर, सविगच्छ पूरइ साख ॥श्री०॥१०॥ सई हथि अकबर थापिया, सहगुरु युगहप्रधान । स० ।
श्रीसुन्दर प्रभु चिरजयउ, दिन दिन चढ़तइ वान ॥श्री०॥११॥
श्री अकबर बहुमान, कीधलउ युगप्रधान । कर्मचन्द बुद्धिनिधान । मीर मलिक खोजा खान, काजीमुला परधान । पयनमइ करि गुणगान, दिन चढ़ते वान ।।१।। सब दिन मुझ मन खंति घणी, श्रिय जिणचन्द सूरिसेव तणो। आं। मारवाड़ गुजर बंग, मेवाड़ सिन्धु कलिंग ।
मालव अपूरव अंग, पूरव सुदेस तिलंग। सब देस मिलि मनरंग, गावइ सुगुरु गुण चंग।
जिम केतकि वनभृङ्ग, तिम सुगुरु सुं मुझ रङ्ग ॥२॥सब।। कलि गौतमा अवतार, तजि मोह मदन विकार ।
निरमाय निरहंकार, धन धन्न ए अणगार। माणिक्यसूरि पटधार, अति रूप वयर कुमार ।
श्रीवंत शाह मल्हार, 'सुमतिकलाल सुखकार ॥ ३ ॥सब०॥
अकबर भूपति मानीया, तिण मानइ सहु लोइ ।
जिनचन्दसूरि सुरीश्वर, वन्दै वंछित होइ । वंदता वंछित होइ अहनिसि, देखतां चित हींस ए।
__ श्रीपूज्य जिनचन्दसूरि समवड़ि अवर कोइ न दीसए । सम्पति कारक, दुखनिवारक धर्मधारक महाव्रती।
मन भाव आणी लाभ जाणो, नमइ अकबर भूपती ।। १ ।।
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