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________________ ६४ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह सूधउ मारग उपदिसी, पाय लगाड्या लाख । स० । दरसण ज्ञान क्रिया धर, सविगच्छ पूरइ साख ॥श्री०॥१०॥ सई हथि अकबर थापिया, सहगुरु युगहप्रधान । स० । श्रीसुन्दर प्रभु चिरजयउ, दिन दिन चढ़तइ वान ॥श्री०॥११॥ श्री अकबर बहुमान, कीधलउ युगप्रधान । कर्मचन्द बुद्धिनिधान । मीर मलिक खोजा खान, काजीमुला परधान । पयनमइ करि गुणगान, दिन चढ़ते वान ।।१।। सब दिन मुझ मन खंति घणी, श्रिय जिणचन्द सूरिसेव तणो। आं। मारवाड़ गुजर बंग, मेवाड़ सिन्धु कलिंग । मालव अपूरव अंग, पूरव सुदेस तिलंग। सब देस मिलि मनरंग, गावइ सुगुरु गुण चंग। जिम केतकि वनभृङ्ग, तिम सुगुरु सुं मुझ रङ्ग ॥२॥सब।। कलि गौतमा अवतार, तजि मोह मदन विकार । निरमाय निरहंकार, धन धन्न ए अणगार। माणिक्यसूरि पटधार, अति रूप वयर कुमार । श्रीवंत शाह मल्हार, 'सुमतिकलाल सुखकार ॥ ३ ॥सब०॥ अकबर भूपति मानीया, तिण मानइ सहु लोइ । जिनचन्दसूरि सुरीश्वर, वन्दै वंछित होइ । वंदता वंछित होइ अहनिसि, देखतां चित हींस ए। __ श्रीपूज्य जिनचन्दसूरि समवड़ि अवर कोइ न दीसए । सम्पति कारक, दुखनिवारक धर्मधारक महाव्रती। मन भाव आणी लाभ जाणो, नमइ अकबर भूपती ।। १ ।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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