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________________ १३ namn श्रीजिनचन्द्रसूरि गीतानि श्रोजिनमाणिकसूरि पटोधर, रोहड़ वंशि चढ़ावत वांन । कहइ गुणविनय पूजजो प्रतपउ, खरतरगच्छ उदयाचलभान।श्री०५॥ राग-सारंग सरसति सामिगी विनवू, मांगु एक पसाय । सखीरी। उलट आणी गाइमुं, श्रीखरतर गच्छराय । स० ॥१॥ श्रीचिणचन्द सूरिश्वरू, कलि गौतम अवतार । स०। सूरि सिरोमणि गुण भयो, सकल कला भंडार ॥श्री०॥ २॥ ओसवंश सिरि सेहरउ, रोहड़ कुलि सिणगार । स० । सिरियादे उरि जन्मोया, श्रीवंत शाह मल्हार ॥श्री०॥ ३ ॥ श्रीजिनशासन परगड़उ, वड खरतरगच्छ ईस । स० । __नर नारी नित जेहनउ, नाम जपइ निशहीस ॥श्री०॥४॥ श्रीजिनमाणिकसूरि नइ, पाटइ प्रगट्यउ भाण । स० । राय राणा मुनि मंडली, मानइ मोटा जाण ।। श्री० ॥ ५ ॥ सोभागी महिमानिलउ, महियल मोहनवेलि । स० । अबझजीव प्रतिबुझाइ, वाणि सुधारम रेलि ॥श्री०॥६॥ जग सगले जस पामीयउ, प्रतिबोधी पानिशाह । स०। खंभाइन दधि माछली, राखी अधिक उच्छाह । श्री०॥७॥ आठ दिवस आषाढ़ के, अट्ठाही निरधारि । स०। सब दुनीयां मांहि सासतो, पालावी अमारि ॥ श्री० ॥ ८ ॥ शील सुलक्षण सोहतउ, सुन्दर साहप धीर । स०। सुविधि सुपरि करि साधीया, पंचनदी पंचपीर ॥श्री०॥६॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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