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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह ए गुरु जोवणीयइ विधि मारगि लीणउ इणिगुरि लोहन मायारे ।
कसि कंचणीयइ जेम परीखा, दिन दिनि वान सवाया रे । नितु वान सवाया मोह न माया, मन्मथ आण मनाया ।
पद सोहाया कोमल काया, श्री खरतर गच्छ राया । लय लागी रंगीरसि जिउ रमतउ, अलि मकरंदइ पीणउ ।
भाग बली गुणि वय जोवणि, जो विधि मारग लोणउ ॥३॥ ए मनि आणदियइ साधु कीरति, बोलइ ए गुरु शील उदारा रे ।
गुरु सहव दे कूखि मराला, श्रीवन्त साह मल्हारा रे। सिरि वंत मल्हारा श्रीजयकारा, रीहडकुलि सिंणगारा ।
जग आधारा नितु अविकारा, माणिकसूरि पटधारा ।। चउरासी गण महि गणी निहाल्या, कोइ नहीं इणि तोला ।
चिरनंदउ जिणचन्द मुनीश्वर, साधुकीर्ति इम बोलइ ।। ४ ॥
राग-देशाख श्रीजिनचन्द्रसूरि गुरु वंदउ, सुललित वाणि करइ रे वखान ।
युगप्रधान जिन शासनि सोहई, अकबर शाहु दीयइ बहुमान ।।१!! गुजर मंडलतें बोलाये, संतन मुखि सुनि जसु गुणगान । बहुत पडूरि सुगुरु पाउधारइ, वखत योगि लाहोर सुथान ॥२॥श्रीor अरथ विचार पूछि सब विध विध, रीझे अकबर साहि सुजान ।
बहुत २ दरसनि मइ देखे, कौन कहुं या सुगुरु समान ॥श्री०॥३।। भाग सोभाग अधिक या गुरु कउ, सूरति पाक अमृत समवानि।
पेस करइ अकबर अणमांग्ये, सबदुनीयां महि अभयादान ।श्री०।४।
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