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श्रोजिनचन्द्रसूरि गीतानि
११ सूरिमन्त्र गुरु सानिध सोधिउ, पातिमाहि अकबर प्रतिबोधिउ भ०। सब दुनीया मांहे कीधी भलाइ, हफतह रोज अमारि पलाई ।।भा२॥ परतिख पंचे पोर आराधी, संघ उत्य काजि पंचनदी साधी । भ० । नाणी अमृत वखाण सुणावइ, सूत्र सिद्धांत ना अरथि जणावइम॥३ बलिहारी म्हारा पूजजी ने वयगे, बलिहारी अणियाले नयणे भ०। श्रीवन्त-नन्दन सकल सनूाइ, उदयवन्त गुरु अधिक पडूरामा४॥ ? .............. .................
..........."भ० श्रीजिनमाणिकसूरि पटधारी, वाचक श्रीसुन्दर सुखकारी ।।म।५।।
ए मेरउ साजणीयउ सखि सुन्दर सोइ, जो मुझ बात जणावइ रे । किणि वाटड़ियइ मेरउ पूज्य पधारइ, श्रीगुरु सबहि सुहावइ रे । गुरु सबहि सुहावइ, जिणि पुरि आवइ, तिणिपुरि सोह चढ़ावइ । गुरु सोभागी, गुरु विधि आगो, पुण्य उदय स चढ़ावइ । गच्छराउ गुणी जिनचन्द मुणी, जण कार न लोपइ कोइ। ___ आवाजउ गुरु कउ जो जांणइ, मेरउ साजण सोइ ॥१॥ ए जिम मइगलीयउ वण वीझ विनोदो, जिम घन दरसण मोरा रे । ___ रवि दंसणियइ कोक मुरंगी, दरसण चन्द चकोरा रे । जिम चन्द चकोरा रे, तेम अघोरा देखि दरसण तोरा। __ हित संतोषइ पुण्यइ पोषइ, अति हरषित मन मोरा । निरदन्दी श्रीजिनचन्द्र पधारउ, वेगइ होइ प्रमोदी ।
तुम्हि देखि सहु जण जिम वीझावण, मइगलोयउ सुविनोदी ॥२॥
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