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________________ ६० ऐतिहासिक जन काव्य संग्रह सुलताण मनहि विचार, लेइवा संयम भार । सुणि मात निज परिवार, यहु अथिर सब संसार । अनुमति यो सुविचार, हम हांहिंगे अणगार || धन० ।। ६ ।। सुणित तूं सुकमाल, तेरो नव योवन सुर साल | यहु मदन- अति असराल, क्या जाणही तूं बाल । आपण मति संभाल, तब पीछइ चारित्रपाल || धन० ॥ ७ ॥ अब निसुणि मोरी मात, ए छोडि जूठी बात । चारित्र कउ व्याघात, नहु कीजइ कहि तात । संजम्म लेइ विख्यात, लइ जु नीकी भाँति ॥ धन० ॥ ८ ॥ भणिया इम इग्यारह अंग, मन मांहे आणि रंग | गुरु भालि अतिहि उत्तंग, गुरु रूपि विजित अनंग | परवादि वाद अभंग, गुरु वचन गंग तरंग ॥ धन० ॥ ६ ॥ सोलसइ संवत बार, जिनमाणिकसूरि पटधार । जिणि सूरि मन्त्र उचार, पामीयो पुण्य अवतार । सिरिवंत शाह मल्हार, सब लोक मानइ कार ।। धन० ।। १० । सुखकरउ श्रीजिणचंद, सब साधु केरे वृन्द । जां लगि रवि ध्रु चन्द, तां लग तूं चिरनन्द | कहइ कनकसोम मुणिंद, करउ संघ कूं आणंद ॥ धन० ॥ ११ ॥ ।। सं० १६२८ वर्षे पं० कनकसोमैविलेखि | ( २ ) राग - मल्हार भइरी भलइ आज पूज्य पधारइ, विहरता गुरु साधु विहारइ ॥ भ० । जुगवर श्रीजिन शासन जागइ, महियल मोटइ भाग सोभागइ || भ०१॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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