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ऐतिहासिक जन काव्य संग्रह
सुलताण मनहि विचार, लेइवा संयम भार ।
सुणि मात निज परिवार, यहु अथिर सब संसार ।
अनुमति यो सुविचार, हम हांहिंगे अणगार || धन० ।। ६ ।। सुणित तूं सुकमाल, तेरो नव योवन सुर साल |
यहु मदन- अति असराल, क्या जाणही तूं बाल ।
आपण मति संभाल, तब पीछइ चारित्रपाल || धन० ॥ ७ ॥ अब निसुणि मोरी मात, ए छोडि जूठी बात । चारित्र कउ व्याघात, नहु कीजइ कहि तात ।
संजम्म लेइ विख्यात, लइ जु नीकी भाँति ॥ धन० ॥ ८ ॥ भणिया इम इग्यारह अंग, मन मांहे आणि रंग |
गुरु भालि अतिहि उत्तंग, गुरु रूपि विजित अनंग |
परवादि वाद अभंग, गुरु वचन गंग तरंग ॥ धन० ॥ ६ ॥ सोलसइ संवत बार, जिनमाणिकसूरि पटधार । जिणि सूरि मन्त्र उचार, पामीयो पुण्य अवतार ।
सिरिवंत शाह मल्हार, सब लोक मानइ कार ।। धन० ।। १० । सुखकरउ श्रीजिणचंद, सब साधु केरे वृन्द ।
जां लगि रवि ध्रु चन्द, तां लग तूं चिरनन्द |
कहइ कनकसोम मुणिंद, करउ संघ कूं आणंद ॥ धन० ॥ ११ ॥ ।। सं० १६२८ वर्षे पं० कनकसोमैविलेखि | ( २ )
राग - मल्हार
भइरी भलइ आज पूज्य पधारइ, विहरता गुरु साधु विहारइ ॥ भ० । जुगवर श्रीजिन शासन जागइ, महियल मोटइ भाग सोभागइ || भ०१॥
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