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________________ श्रीजिनचन्द्रसूरि गीतानि ॥ श्रीजिनचन्द्रसूरि गीतानि मन धरोय सासण माइ, तुं मुझकरि सुपसाउ, मन वचन दृढ़ करिकाय, चिदानंद सुं लयलाय, ___ गाइवा श्री गछराउ, मुझ उपज्यौ बहु भाउ ॥ १ ॥ धन धन खरतर गच्छ मंडण, श्रीजिनचंद्रसूरि पय वंदण । टेर। मारवाड़ि देस उदार, जिहां धरम को विस्तार । तिहां खेतसर मंझारि, ओसवंश कउ सिणगार । सिग्वंत साह उदार, तसु सिरीय देवी नार ॥ धन० ॥२॥ सुख विलसतां दिन दिन्न, पुण्यवंत गरभ उपन्न । नव मास जिहां पडिपुन्न, जनमीया पुत्र रतन्न । तिहां खरचीया बहु धन्न, सब लोक कहइ धन धन्न ॥धन०॥३॥ नाम थापना सुलताण, नितु नितु चढ़ते वान । जग माहे अमली मान, सूरिज तेज समान । ___ मतिमंत सब गुण जाण, रूप रंजवइ रायराण ॥ धन० ॥४॥ तिहां विहरता माणिकसूरि, आविया आणंद पूरि । देसणा दिद्ध सनूरी, निसुणइ भवियण भूरि । पूरब पुण्य पडूरि, मोहनी कर्म करि चूरि ॥धन० ॥५॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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