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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह एकरसउ पउधारियइ हो, दीजइ दरशण रसाल।
संघ उमाहु अति घणउ हो, वंदन चरण त्रिकाल ॥६क्षा सुवि० वाल्हेसर रलियामणा हो, जे जगि साचा मीत ।
विण थी पांगरउ पूज्यजी रे, मो मनि ए परतीत ॥६२। सुवि० इणि भवि भवे भवान्तरइ हो, तुं साहिब सिरताज ।
मातु पिता तुं देवता हो, तुं गिरुआ गच्छराज ॥६॥ सुविक पूज्य चरण नित चरचतां हो, वन्दत वंछित जोइ। __अलिअ विधन अलगा टरइ हो, पगि २ संपत होइ ॥६४|| सुवि० शांतिनाथ सुपसाउलइ हो, जिनदत्त कुशल सूरिन्द ।
तिम जुगवर गुरु सानिधइ हो, संघ सयल आणंद ।।६५।। सुवि० मीठा गुण श्रीपूज्य ना हो, जेहवी साकर द्राख ।
रंचक कूड़ इहा त(न?) ही हो, चन्दा सूरिज साख ॥६६॥ सुवि० तासु पाटि महिमागरु हो, सोहग सुरतरु कन्द ।
सूर्य जेम चढती कला हो, श्री जिनसिंह सुरीद ॥६॥ सुवि० हो युगवर, नामइ जय जय कार । वंश बधावइ चोपड़ा हो, दिन दिन अधिकउ वान ।
पाटोधर पुहवी तिलउ हो, चिर नन्दउ श्रीमान् ।।६८॥ सुवि० युगवर गुरु गुण गांवतां हो, नव नव रंग विनोद । एह १ आस्या फलइ हो, जंपइ "समयप्रमोद" ॥६६॥ सुवि०
॥ इति युगप्रधान जिनचन्द सूरि निर्वाणमिदं ।
१ दूसरी हस्तलिखित प्रतिमें रुड़ई है।
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