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________________ ८६ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह एकरसउ पउधारियइ हो, दीजइ दरशण रसाल। संघ उमाहु अति घणउ हो, वंदन चरण त्रिकाल ॥६क्षा सुवि० वाल्हेसर रलियामणा हो, जे जगि साचा मीत । विण थी पांगरउ पूज्यजी रे, मो मनि ए परतीत ॥६२। सुवि० इणि भवि भवे भवान्तरइ हो, तुं साहिब सिरताज । मातु पिता तुं देवता हो, तुं गिरुआ गच्छराज ॥६॥ सुविक पूज्य चरण नित चरचतां हो, वन्दत वंछित जोइ। __अलिअ विधन अलगा टरइ हो, पगि २ संपत होइ ॥६४|| सुवि० शांतिनाथ सुपसाउलइ हो, जिनदत्त कुशल सूरिन्द । तिम जुगवर गुरु सानिधइ हो, संघ सयल आणंद ।।६५।। सुवि० मीठा गुण श्रीपूज्य ना हो, जेहवी साकर द्राख । रंचक कूड़ इहा त(न?) ही हो, चन्दा सूरिज साख ॥६६॥ सुवि० तासु पाटि महिमागरु हो, सोहग सुरतरु कन्द । सूर्य जेम चढती कला हो, श्री जिनसिंह सुरीद ॥६॥ सुवि० हो युगवर, नामइ जय जय कार । वंश बधावइ चोपड़ा हो, दिन दिन अधिकउ वान । पाटोधर पुहवी तिलउ हो, चिर नन्दउ श्रीमान् ।।६८॥ सुवि० युगवर गुरु गुण गांवतां हो, नव नव रंग विनोद । एह १ आस्या फलइ हो, जंपइ "समयप्रमोद" ॥६६॥ सुवि० ॥ इति युगप्रधान जिनचन्द सूरि निर्वाणमिदं । १ दूसरी हस्तलिखित प्रतिमें रुड़ई है। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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