SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री युग-प्रधान निर्वाण रास पुज्य पुज्य मुखि उच्चरइ, नयणि नीर नवि मायइ रे 1 सहगुरु सो ((सा) लइ सांभरइ, हियडुं तिल तिल थायइ रे || ५२ || पूज्य० ॥ संघ साधु इम विलविलइ, हा ! खरतर गच्छि चंद रे । हा ! जिणशासण सामियां, हा ! परताप दिणंदउ रे || ५३|| पूज्य०|| हा ! सुन्दर सुख सागर, हा! मोटिम भंडारउ रे । हा ! रीहड़ कुल सेहरउ, हा ! गिरुवा गणधार रे || ५४ || पूज्य ० || हा ! मरजाद महोदधि, हा ! शरणागत पाल रे । हा ! धरणीधर धीरमा, हा ! नरपति सम भाल रे ।। ५५ ।। पूज्य ० ।। बहु वन सोहइ भूमिका, वाणगंगा नइ तीर रे । आरोगी किसणागरइ, बाजाइ सुरभि समीर रे ।। पू०॥ ५६ ॥ बावन्ना चंदन ठवी, सुरहा तेल नी धार रे । घृत विश्वानर तर पिनइ, कीधउ तनु संस्कार रे || पू०॥ ५७ ॥ वेश्वानर केहनउ सगड, पणि अतिसय संयोग । नवि दाझी पुज्य मुंहपत्ति, देखइ सघला लोग रे ॥ पू०॥ ५८ ॥ पुरुष रत्न विरहइ करी, साथि मरवउ न थावइ रे । शान्तिनाथ समरण करी, संघ सहु घर आवइ रे || पू०॥ ५६ ॥ ढाल: ८५ राग - धन्यासिरी ( सुविचारी हो प्राणी निज मन थिर करि जोय ) सुविचारी हो पूज्यजी, तुम्ह बिनु घड़ी रे छः मास । दरसण दिखाड़उ आपणउ हो, सेवक पूजइ आश || ६०|| सुवि० Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy