SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह गुरु कुल वासै हो वसिज्यो चेलडां रे, मत लोपउ गुरु कार। सार अनइ वलि संयम पालिज्यो रे, सूधौ साधु आचार ॥४२॥ना०।। संघ सहु नै धर्मलाभ कागलइ रे, लिखिज्यौ देश विदेश । गच्छाधुरा जिनसिंहसूरिनिर्वाहिस्य रे,करिज्यो तसुआदेश।।४ाना०॥ साधु भणी इम सीख चै पूजजी रे, अरिहन्त सिद्ध सुसाखि । संइमुख अणसण पूज्य जो उच्चरइ रे, आसू पहिले पाखि ॥४४||ना०॥ जीव चउरासि लख (राशि) खामिनै रे, कञ्चन तृण सम निन्द । ममता नै वलि माया मोसउ परिहरी रे, इमनिज पाप निकंद ॥४५॥ना०॥ वयर कुमार जिम अणसण उजलउ रे, पालो पहुर चियार । सुख ने समाधे ध्यानै धरम नइ रे, पहुंचइ सरग मझार ॥४ाना०॥ इन्द्र तणो तिहां अपछर ओलगइ रे, सेव करइ सुर वृन्द । साधु तणउ धर्म सूधौ पालियौ रे, तिण फलिया ते आणंद ॥४७॥ना०॥ दोहा (राग गौड़ी) गंगोदक पावन जलइ, पूज्य पखाली अंग। चोवा चन्दन अरगजा, संघ लगावइ रंग ॥४८॥ बाजा बाजइ जन मिलइ, पार विहूणा पात्र । सुर नर आवै देखवा, पूज्य तणउ शुभ गात्र ॥४६॥ वेश वणावी साधु नउ, धूपि सयल शरीर । बैसाड़ी पालखियइ, उपरि बहुत अबीर ।। ५० ।। ढाल राग-गउड़ो (श्रेणिक मनि अचरिज थयउ एहनी) हाहाकार जगत्र हुयउ, मोटो पुरुष असमानौ रे। बड़ वखती विश्रामियउ, दीवइ जिउ बूझाणउ रे ।। ५१ ।। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy