________________
श्री युग-प्रधान निर्वाण रास पंच मिली आलोचिया, इहां पूज्य करै चोमासो रे । __ जन्म जीवित सफलउ हुवइ, सयणां पूजइ आसौ रे ॥३३॥०॥ इम मिली संघ तिहां थकी, आवइ पुज्य दिदारइ रे ।
महिमा बधारइ मेड़तै, पूज्य वन्दी जन्म समारइ रे ॥३४॥दे०॥ युगवर गुरु पउधारीयइ, संघ करइ अरदासो रे ।
नयर बिलाड़इ रंग सुं, पूज्यजो करउ चौमासो रे ॥३५॥दे०॥ इम सुणि पूज्य पधारिया, बिलाड़इ रंगरोल रे । संघ महोत्सव मांडियउ, दीजै तुरत तंबोल रे ॥ ३६ ॥ दे० ॥
दोहा ( राग गौडी) पूज्य चउमासो आवियउ, श्री संघ हर्ष उत्साह ।
विविध करइ परभावना, ल्ये लक्ष्मी नौ लाह ॥ ३७ ।। पूज्य दियइ नित्य देशना, श्रीसंघ सुणइ वखाण । . पाखी पोसहिता जिमइ, धन जीवित सुप्रमाण ।। ३८ ॥ विधि सुं तप सिद्धान्त ना, साधु वहइ उपधान ।
पूज्य पजूसण पडिकमै, जंगम युगहप्रधान ॥ ३९ ॥ संवत सोलेसित्तरइ, आसू मास उदार ।
सुर संपद सुह गुरु वरी, ते कहिसुं अधिकार ।। ४० ॥
(ढाल भावना री चंदलियानी) नाणे (न) निहालइ हो पूज्य जो आउख उ रे, तेड़ी संघ प्रधान । जुगवर आपै हो रूड़ी सोखड़ो रे, सुणिज्यो "पुण्य-प्रधान"॥४१॥ना०॥
१गहड, २ रो
-
Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org