SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पुज्य देखि दीदारई मिलिया, पातिशाह तगा कोप गलीया । गुजराति धरा क्युं आए, पानिशाहि गुरु बतलाए ॥२४॥ पातिशाहि कुं देण आशोश, हम आए शाहि जग.श । काहे पाया दुःख शरीर, जाओ जउख करउ गुरु पीर ।।२५।। एक शाहि हुकुम जउ पावां, बंदियड़ां बंदि छुड़ावां । पतिशाहि खयरात करीजई, दरशणियां पूरु (दूबउ) दीजई ।। २६ ।। पतिशाहि हुंतउ जे जूठउ, पूज्यभाग बलइ अति तूठउ। - जाउ विचरउ देश हमारे, तुम्ह फिरतां कोइ न वारइ ।। २७ ।। धन धन खरतरगच्छ राया, दर्शनियां दण्ड छुडाया। पूज्य सुयश करि जगि छाया, फिरि सहरि मेडतइ आया ॥२८॥ दूहा (धन्यासिरि) श्रावक श्राविका बहु परइ, भगति करइ सविशेष । आण बहै गुरुराज नी, गौतम समवड़ देखि ॥ २६ ॥ धरमाचारिज धर्म गुरु, धरम तणउ आधार। हिव चउमासउ जिहां करइ, ते निसुणौ सुविचार ॥ ३० ।। ढाल (राग-धवल धन्यासिरी, चिन्तामणिपासपूजिय) देश मंडोवर दीपतउ, तिहां बीलाड़ा नामौ रे । नगर वसै विवहारिया, सुख संपद अभिरामौ रे ।।३१।। दे० ॥ धोरी धवल जिसा तिहां, खरतर संघ प्रधानो रे । कुल दीपक कटारिया, जिहां घरि बहु धन धानो रे ॥३२॥दे०॥ १ बंध, २ दंद, ३ श्रावी, ४ जिहाँ रहै, ५ सहुरमतइ । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy