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श्री युग-प्रधान निर्वाण रास
|| दोहा सोरठी ॥
महा मुणीश्वर मुकुट मणि, दरसणियां दीवांण । च्यारि असी गच्छि सेहरो, शासण नउ सुरतांण ॥१५॥
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अतिशय आगर आदि लगि, झूठ कहुं तर नेम ।
जिम अकबर सनमानिउ, तिम वलि शाहि सलेम ॥ १६ ॥ ढाल (जतनी ) पातिसाहि सलेम सदोष, कियउ दरसणियां सुं कोप ।
ए कामणगारा कामी, दरबार थी दूरि हरामी ||१७|| एकन कुं पाग बंधावर, एकन कुं नाआस अणाव ।
एकन कुं देशवटौ जंगल दीजै, एकन कुं पखाली कीजइ ||१८|| ए शाहि हुकुम सांभलिया, तसु कोप (कउप) थकी खलभलिया ।
जजमान मिली संयतना, दरहाल करइ गुरु जतना ॥१६॥
के नासि हीई पूंठि पड़ीया, केइ मइवासइ जइ चढ़ीया । के जंगल जाई बइठा, केइ दौड़ि गुफा मांहिं (जाइ) पइठा ||२०|| जे नासत यवने झल्या, ते आणि भाखसी घाल्या ।
पाणी नै अन्नज पाल्या, वयरीड़ा वयर सुं साल्या ||२१|| इम सांभलि शशन हीला, जिणचंद सुरीश सुशीला ।
गुजराति धरा थी पधारइ, जिन शाशन वान वधारइ ||२२|| अति आसति वलि गुरु चाली, असुरां भय दूरइ पाली । उग्रसेनपुरइ पउचाइ, पुज्य शाहि तणइ दरबार ||२३||
४ कथं १ का २ हिंदु ६
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