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श्रीजिनचन्द्रसूरि अकबर-प्रतिबोध रास ७७. द्यइ आसीस दुनी महि मंडलइजो, प्रतिपइ कोडि वरीस ।
ए गुरुजी (२) जिण जगिजीव छुड़ाविया जो ॥२६ ।।.
राग-धन्याश्री।
ढाल:- (कनक कमल पगला ठवइ ए) प्रगट प्रतापी परगडो ए, सूरि बडो जिणचन्द ।
कुमति सवि दुरे टल्या ए, सुन्दर सोहग कन्द ।। २७ ।। सदा सुहगुरु नमोए, दृइ अकबर जसु मांन । सदा० । आंकणी। जिनदत्तसूरि जग जागतउ ए, गरुने सानिधकार । स० ।
श्रीजिनकुशल सूरीश्वरू ए, वंछित फल दातार ॥स०॥ २८ ।।। रीहड़ वंशइ चंदलउ ए, श्रीवन्त शाह मल्हार । स०।
सिरीयादे उरि हंसलउ ए, माणिकसूरि पटधार |स०॥ २६ ।। गुरु ने लाभ हुया घणां ए, होस्यइ अवर अनन्त । स० ।
धरम महाविधि विस्तरइ ए, जिहां विहरइ गुणवंत ।। स०॥३०॥ अकबर समवड़ि राजीयउ ए, अवर न कोई जांण ।स०।
गच्छपति मांहि गुणनिलउ ए, सूरि वड़उ सुरताण ।। स०।३१।। कवियग कहइ गुण केतलाए, जसु गुण संख न पार । स० ।
जिरंजीवउ गुरु नरवरू ए, जिन शासन आधार ||स०॥३२॥ जिहां लगी महीयलि सुर गिरीए, गयण तपइ शशि सूर ।स०
जिनचन्द रि तिहां लगइ, प्रतपउ पून्य पडूर ॥३३।।स।
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