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श्रीजिनचन्द्रसूरि अकबर-प्रतिबोध रास अरदास प्रमु अवधारि मेरी, मंत्रि श्रीजो कहइ वली। __ महिमराज ने प्रभु पाटि थापउ, एह मुझ मन छइ रलो ॥ गुणनिधि रत्ननिधान गणिनई, सुपद पाठक आपीयइ । .... शुभ लगन वेला दिवस लेइ, वेगि इनकुं थापियइ ॥१६॥ नरपति वांणी श्रीगुरु सांभली,
कहइ मंइ मानी बातज ए भली । ए बात मांनी सुगुरु वाणी, लगन शोभन वासरई । __मांडियउ उच्छव मंत्रि कर्मचन्द, मेलि महाजन बहुरई॥ पातिशाहि सइमुख नाम थापिउ, सिंह सम मन भाविया ।
जिनसिंह सूरि सुगुरु थाप्या, सूहवि रंग बधाविया ॥ १७ ॥ आचारज पद श्री गुरु आपिउ,
संघ चतुर्विध साखइ थापियउ । व्यापीउ निरमल सुजस महीयलि, सयल श्रीसंघ सुखकरू ।
चिरकाल जिनचंदसूरि जिनसिंह, तपउ जिहां जगि दिनकरू ॥ जयसोम रत्ननिधान पाठ (क), दोय वाचक थापिया।
गुणविनय सुन्दर, समयसुन्दर, सुगुरु तसु पद आपीया ॥ १८ ॥ धप मप धो धों मादल बाजिया,
तव तसु नादइ अम्बर गाजिया । बाजिया ताल कंसाल तिवली, भेरि वीणा भृगली ।
अति हर्ष माचइ पात्र नाचइ, भगति भामिनी सवि मिलो। मोतीयां थाल भरेवि उलटि, वार वार बधावती ।
इक रास भास उलासि देतो, मधुर स्वर गुण गावती ।। १६ ॥
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