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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह इम चैत्री पूनम दिवस सांतिक, साहि हुकम मुंहतइ कोयउ।
जिनराज जिनचंदसूरि वंदी, दान याचक नइ दीयउ ॥१२॥ सज करी सेना देस साधन भणी,
कास्मीर ऊपर चढ़ोयउ नर मणी । गुरु भणोय आग्रह करीय तेड़या, मानसिंह मुनि परवर्या ।
संचर्या साथइ राय रांणा, उम्बरा ते गुणभर्या ।। वलि मोर मिलक बहु खान खोज, साथि कर्मचन्द मंत्रवो।
सब सेन वाटई वहइ सुवधइ, न्याय चलवइ सूत्रवी ।। १३ ।। श्री गुरु वांणि श्रीजी नितु सुणइ,
धर्म मूर्ति ए धन धन सुह भणइ । शुभ दिनइ रिपु बल हेलि भंजी, नयर श्रीपुरि ऊतरी ।
अम्मारि तिहां दिन आठ पाली देश साधी जयवरी। आवियउ भूपति नयर लाहुर, गुहिर वाजा बाजिया ।
गच्छराज जिनचंदसूरि देखी, दुख दूरइ भाजीया ।। १४ ।। जिनचन्दसूरि गुरु श्रीजी सुं आवि मिली,
. एकान्तइ गुण गोठि करइ रली ।। गुण गोठि करनां चित्त धरतां सुणिवि जिनदत्तसूरि चरी! ___ हरखियउ अकबर सुगुरु उपरि प्रथम सई मुख हितकरी । जुगप्रधान पदवो दिद्धगुरु कुं, विविध वाजा बाजिया।
बहु दान मानइ गुणह गानइ, संघ सवि मन गाजिया ।। १५ ।। गच्छपति प्रति बहु भूपति वीनवइ ।
सुणि अरदास हमारो. तुं हिवइ ।।
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