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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
राग गौड़ा बालूडानीःपंडित मोटा साथ मुनिवर जयसोम,
कनकसोम विद्या वरू ए। महिमराज रत्ननिधान वाचक,
- गुणविनय समयसुन्दर शोभा धरू ए ॥८६॥ इम मुनिवर इकतीस गुरु जी परिवर्या,
. ज्ञान क्रिया गुण शोभता ए। संघ चतुर्विध साथ याचक गुणी जण,
जय जय वाणी बोलता ए ॥८॥ पहुंता गुरु दीवांण देखी अकबर,
आवइ साम्हा उमही ए।। वंदी गुरु ना पाय मांहि पधारिया,
सइंहथि गुरु नौ कर ग्रही ए॥८८॥ पहुंता दउड़ो मांहि, सुहगुरु साह जो ।
धरमवात रंगे करइ ए। चिंते श्रीजी देखी ए. गुरु सेवतां,,
. पाप ताप दूरइ हरइ ए॥८९। गच्छपति ये उपदेश, अकबर आगलि
मधुर स्वर वाणी करी ए । जे नर मारइ जीव ते दुख दुरगति,
- पामइ पातक आचरी ए 080||
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