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________________ N AVNA श्रीजिनचन्द्रसूरि अकबर-प्रतिबोध गस संघ उच्छव मंडइ आडंबर अभिराम। . संघ आवियो वंदण, महिम तगउ तिण ठाम ॥७८।। खरची धन अरची श्री जिनराय विहार । गुरु वाणि सुणि चित्त हरखिउ संघ अपार । संघ वंदो वलीयउ, पहुंतड़ महिम मंझार । पाटणसरसइ वलि, कसूर हुयउ जयकार ॥६॥ लाहुर महाजन वंदन गुरु सुजगीस। सनमुख ते आविउ चाली कोस चालीस ! आया हापाणइ श्रीजिनचन्द सूरीश। नर नारी पयतलि सेव करइ निसदीस ॥८॥ राग गौड़ी दूहाःवेगि बधाउ आवियउ, कीयउ मंत्रीसर जांण । .. क्रम २ पूज्य पधारिया, हापाणइ अहिठाण ।।८।। दोधी रसना हेम नी, कर कंकण के कांण । दानिइ दालिद खंडियउ, तासु दीयउ बहुमान ।।८।। पूज्य पधायां जांण करि, मेली सब संघात । पहुंता श्री गुरु वांदिवा, सफल करइ निज आथ ।।८३।। तेड़ी डेरइ आंण करि, कहइ साह नई मन्त्रोस। जे तुम्ह सुगुरु बोलाविया, ते आव्या सुरीस ||८४॥ अकबर वलतो इम भणइ, तेड़उ ते गणधार । दरसण तसु कउ चाहिये, जिम हुइ हरष अपार ।।८५।। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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