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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह |
गज डम्बर सबलइ, पूज्य पधार्या जाम ।
मन्त्री लाहिण कीधी, खरची बहुला दाम । याचक जन पोष्या, जग में राख्यो नाम ।
धन धन ते मानव, करइ जउ उत्तम काम ॥ ७३ ।। व्रत नन्दि महोत्सव, लाभ अधिक तिण ठाण ।
ततखिण पातशाहि, आव्या ले फुरमाण । चाल्या संघ साथइ, पहुंता फलवधि ठाणि ।
श्री पास जिणेसर, इंद्या त्रिभुवन भाणि ॥ ७४ ।। हिव नगर नागोरउ रई आया श्री गच्छराज ।
वाजिन बहु हय गय मेलो श्री सङ्घ साज || आवि पद वंदी करइ हम उत्तम आज ।
जउ पूज्य पधार्या तर सरिया सब काज ||७|| मन्त्रीसर वांदइ मेहइ मन नइ रङ्ग ।
__ पइसारो सारउ कीधो अति उच्छरङ्ग । गुरु दरसण देखि बधियो हर्ष कलोल।
। महीयलि जस व्यापिउ आपिउ वर तंबोल ।।७६।। गुरु आगम ततखिण प्रगटियो पुन्य पडूर ।
संघ बीकानेरउ आविउ संघ सनूर । त्रिणसई सिजवाला प्रवहण सई वलि च्यार ।
धन खरचइ भवियण, भावइ वर नर नारि ॥७७।। अनुक्रम पड़िहारइ, राजुलदेसर गामि ।
- रस रंग रीणीपुर, पहुंता खरतर स्वामि ।
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