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________________ श्री जिनचन्द्रसूरि अकबर - प्रतिबोध रास तिथि बारस रे, मुंको ठाकुर जस वर्यो । 'जस वर्यो संघइ नयर पाली, आडंबर गुरु मंडियउ । पूज्य वांदिया तिहां नांदि मांडी, दानि दालिद्र खंडियउ । लांबियां ग्रामई लाभ जाणो, सूरि सोझित निरखिया । जिनराज मंदिर देखी सुन्दर, वंदि श्रावक हरखिया ॥ ६६ ॥ ates रे, आनन्द पूज्य पधारोए । पइसारउ रे, प्रगट कीयउ कट्टारीए । जइतारणि रे, आवे बाजा वाजिया | गुरु वेदी रे, दान बलइ संघ गाजिया || गाजियउ जिनचंद्रसूरि गच्छपति, वीर शासनि ए बड़ो । कलिकाल गोतम स्वामि समवड़, नहींय को ए जेवड़उ । विहरता मुनिवर वेगि आवइ, नयर मोटर मेड़तइ । परसरइ आया नयर केरे, कहइ संघ मुंहता प्रतइ ॥ ७० ॥ ॥ राग गौडी धन्या श्री ॥ कर्मचन्द कुल सागरे, उदया सुत दोय चन्द । " भागचन्द मंत्रीसर बांधव लिखमीचन्द | हयगय रह पायक, मेली बहु जन वृन्द । करि सबल दिवाजड, वंदइ श्री जिनचन्द ॥ ७१ ॥ पंच शब्दउ झलरि, बाजइ ढोल नीसांण । भवियण जण गावइ, गुरु गुण मधुरि वाण । तिहां मिलीयो महाजन, दीजइ फोफल दांन । सुन्दरी सुकलीणी, सूक्ष्व करइ गुण गान ॥ ७२ ॥ ६७ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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