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ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह
हितकरिय कहइ गुरु सुणउ नरपति, जीव हिंसा टालीयइ ॥ किण पर्व पूनिम दिद्ध मंइ तुझ, अभय अविचल पालीयइ । ___ गुरु संघ श्रीजावालपुर नई वेगि पहुंता पारणइ ।। अति उच्छव कियउ साह वन्नइ सुजस लीधो तिणि खिणइ ॥६६॥
मंत्री कर्मचन्द रे करि अरदास सुसाहिनइ । फुरमाणा रे मुक्या दुइ जण पूज्य ने ॥
चउमासउ रे. पूरउ करिय पधारजो। पण किण इक रे पछइ वार म लगाइजो।
म लगाड़िजो तिहां बार काइ, जहति जाणी अति घणी ॥ पारणइ पूज्य विहार कोधउ, जायवा लाहुर भणी।
श्रीसंघ चउविह सुगुरु साथइ, पातिशाही जण वली ।। गांधर्व भोजक भाट चारण मिला गुणियन मन रली ॥६॥ हिव देछरे गाम सराणउ जाणियइ, भमराणी रे खांडपरंगि वखाणियइ, संघ आवी रे विक्रमपुर नो उमही।
गुरु वंद्यारे महाजन मजलइ गहगही ॥ गहि गहीय लाहिण संघ कीधी नयर द्रुणाडइ गयो। __ श्रीसंघ जेसलमेरु नो तिहां वंदो गुरु हरखित थयो । रोहीठ नइरइ उच्छव बहु करि, पूज्य जी पधराविया ।
साह थिरइ मेरइ सुजस लाधा, दान बहु दवराविया ।।६८॥ संघ मोटउ रे, जोधपुरउ तिहां आवीयउ,
करि लाहिण रे शासनि शोभ चढ़ावियो । व्रत चोथौ रे, नांदी करी चिहुं उच्चयों।
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