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________________ श्रीजिनचन्द्रसूरि अकबर - प्रतिबोध रास महिमराज वाचक सातठाणे, मुकीया लाहोर भणी । मुनि वेग पहुंता शाहि पासइ, देखि हरखिउ नरमणी ॥ ४७ ॥ साहि पूछइ वाचक प्रतई, कब आवइ गुरु सोय । जिण दीठइ मन रंजीय, जास नमइ बहुलोय || लोय प्रणमइ जासु पयतलि, जगत्रगुरु हइ ओ बड़ा । तब शाहि अकबर सुगरु तेड़ण, वेगि मुंकइ मेवड़ा || च मासि नयडी अबही आवइ, चालवउ नवि गुरु तणउ । तब कहि अकबर सुणो मंत्री, लाभ द्यउंगउ तसु घणउ ॥ ४८ ॥ पतशाहि जण अविया, सुह गुरु तेड़ण काजि । बहु ६३ रंजस कुछ ते नवि करइ, गह गहीयउ गच्छराज ॥ गच्छराज दरसणि वेग देखि, हेजि हियड़उ ह्रींस ए । अति हर्प आणो साहि जणते, वार वार सलीस ए ॥ सुरताण श्रीजी मंत्रीजी, लेख तुम्ह पठाविया । हिव मुझ जावउ तिहां सही, तिणवार मिलियउ संघ सघलो, सिर नामी ते जण कहइ गुरु कुं, शाहि मंत्री बोलाविया ॥ ४६ ॥ सुह गुरु कागल बांचिया, निज मन करइ विचार | संघ मिलिउ तिन बार ॥ वइस मन आलोच ए । चउमास आवी देश अलगड, सुगुरु कहउ किम पहुंच ए ॥ समझावि श्रीसंघ खंभपुर थी, सुगुरु निज मन दृढ़ सही । मुनिवेग चाल्या शुद्ध नवमी, लाभ वर कारण लही ||५०|| राग सामेरी दूहाः सुन्दर शकुन हुआ बहु, केता कहुं तस नाम । मन मनोरथ जिण फलइ, सीझइ वंछित काम ॥५१॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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