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________________ ६२ - ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह क्रोय मान माया तजी, नहीं जसु लोभ लगार । उपशम रस में झीलता, ते मुझ गुरु अणगार ॥ ४०॥ शत्रु मित्र दोय सारिखा, दान शीयल तप भाव । जीव जतन जिहां कीजिय, धर्मह जाणि स्वभाव ।। ४१ ।। मई जाण्या हई बहुत गुरु, कुग' तेरइ गुरु पीर । ___ मन्त्रि भणइ साहिब सुणउ, हम खरतर गुरु धीर ॥ ४२ ।। जिनदत्त सूरि प्रगट हइ, श्री जिन कुशल मुणिन्द । तसु अनुक्रमि हइ सुगण नर, श्रीजिनचन्द सुरिंद ।। ४३ ।। रूपइ मयण हराविउ, निरुपम सुन्दर देह । ___सकल विद्यानिधि आगरु, गुण गण रयण सुमेह ।। ४४ ॥ -संभलि अकबर हरखियउ, कहां हइ ते गुरु आज । राजनगर छई सांप्रतइ, सांभलि तु महाराज ॥ ४५ ॥ राग धन्या श्री बात सुणी ए पातिशाह, हरखियउ हीयइ अपार । हुकम कियो महुता भणी, तेडि गुरु लाय म वार ॥ ४६॥ मत वार लावइ सुगुरु तेडण, भेजि मेरा आदमी । अरदास इक साहिब आगइ, करइ मुहतउ सिर नमी ।। ४७ ।। अब धूप गाढि पाव चलिय, प्रवहण कुछ बइसे नहीं। गुजराति गुरु हइ डीलि गिरुआ, आविन सकइ अबसही॥४८॥ वलतउ कहइ मुहता भणी, तेड़उ उसका सीस । दुइ जण गुरु नइ मुकीया, हित करी विश्वा वीस ॥४६ ।। हितकरि मंक्या वेगि दुइजण, मानसिंह इहां भेजीय । जिम शाहि अकबर तासु दरसणि, देखि नियमन रंजीय ॥५०॥ _Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002600
Book TitleAetihasik Jain Kavya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherShankardas Shubhairaj Nahta Calcutta
Publication Year
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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